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बिलासपुर। 57 वर्षीय महिला एथलेटिक शारदा पांडेय 50 साल की उम्र से गोला फेंक खेलना शुरू की. अब इनके पास सैकड़ों मैडल है. इनके परिवार की दो बेटी और पति खेल में गोल्ड मैडल ले चुके है. इनके परिवार को अब चैंपियन फैमिली भी कहा जाने लगा है. पारिवारिक माहौल में घरेलू महिला होने के साथ ही यह घर संभालने का काम करती थी. परिवार में पिता की प्रेरणा से ये शादी के पहले एथलेटिक में भला फेक खेलती थी, ससुराल खेल से जुड़ा हुआ था और ससुराल में पति को खेलता देख इन्हे भी खेलने की ललक तो थी लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी और बच्चियों की परवरिश ने इन्हे खेल से दूर कर दिया था. बड़ी उम्र में यह खेलना शुरू की. आज भले ही इनको खेल से कोई लाभ नहीं हुआ लेकिन ये अपने खेल के माध्यम से खेल की दुनिया में अपना एक अलग नाम बना ली है. कई राष्ट्रीय स्तर के पदक और सम्मान से अब तक इन्हे सैकड़ो बार नवाजा जा चुका है. इनकी खेल की शुरुवात कैसे हुई और क्यों ये खेलना शुरू की जानते है खुद शारदा पांडेय से.

बिलासपुर शारदा पांडेय वह महिला है जो 57 की उम्र में भी 27 की लड़कियों जैसा खेल में प्रदर्शन करती हैं. बिजली की तरह इनमें फुर्ती और अपने लक्ष्य को पाने के लिए ये कड़ी मेहनत कर लक्ष्य को हासिल कर ही लेती है. हम बात कर रहे हैं बिलासपुर की चैंपियन फैमिली की मुख्य सदस्य शारदा पांडेय की. शारदा पांडेय आज एथलेटिक्स की दुनिया में काफी बड़ा नाम है. आज उनके नाम लगभग 25 नेशनल गोल्ड मेडल और सैकड़ो की संख्या में कांस्य मेडल हैं. ये एथलेटिक्स में गोला फेक खेल में अपनी एक अलग पहचान बना रखी हैं. भारत के सभी एथलेटिक्स कंपटीशन में ये भाग ले चुकी हैं और आगे भी इस माह होने वाले जम्मू कश्मीर में एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने जा रही हैं. शारदा पांडे वैसे तो घरेलू महिला है और इनके जीवन का 25 साल परिवार को संभालने और संवारने के साथ ही बेटियों की परवरिश, शिक्षा, दीक्षा और उनके करियर बनाने में निकल गए, लेकिन इन्हें अपने सपने बच्चों और परिवार के लिए दबाना पड़ गया था. यह अपना जीवन परिवार में निछावर कर दी थी लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि वह एक बार फिर खेल की दुनिया में वापस आई.

पिता ने सिखाया खेल और बेटियों ने दोबारा सपने पूरे करने की दी प्रेरणा

शारदा पांडे बताती है कि उन्हें बचपन से ही एथलेटिक्स में इंटरेस्ट रहा. वह जब छोटी थी तो पिता प्रेम शंकर पांडेय उनके प्रथम गुरु के रूप में सामने आए और उन्होंने उसे मच्छरदानी बांधने वाली लकड़ी से भाला फेंक की तैयारी शुरू कराई. शारदा बताती है कि दादा हेड मास्टर थे पिता भी हेड मास्टर रहे और शिक्षक फैमिली होने के नाते उन पर भी अच्छी शिक्षा की जिम्मेदारी थी. लेकिन वह हमेशा ही मैथ्स में कमजोरी रहती और उनका पढ़ाई की ओर ध्यान हटता देख पिता उसे स्कूल ले गए और भाला फेंक खेल के विषय में बताया. उसे दौरान उनके पास प्रोफेशनल भाला तो नहीं था तब पिता मच्छरदानी बांधने वाले बांस की लकड़ी से शारदा को प्रेक्टिस करवाया करते थे. शारदा तब स्कूल शिक्षा के बाद कॉलेज शिक्षा तक भाला फेंक के खेल में अपनी पहचान बनाने लगी थी. 25 साल की उम्र में शारदा की शादी हो गई. यहां पति भी एथलेटिक्स से जुड़े हुए थे और वह गोला फेक खेल खेलते थे, तब शारदा उन्हें देखती थी फिर धीरे-धीरे समय बीतता गया और उनकी जिंदगी में दो बेटियां आ गई जिनमें परवरिश के लिए शारदा ने अपने स्पोर्ट्स ऑफिसर की नौकरी छोड़ बच्ची की परवरिश में लग गई. उनकी शिक्षा दीक्षा और जिम्मेदारियां पूरी करते समय बीत गया फिर 25 साल बाद दोबारा फिर शारदा 50 साल की उम्र में एथलेटिक्स खेलने मैदान में उतर गई.

50 की उम्र में मैदान में पहली बार उत्तरी और गोल्ड मैडल लाई

शारदा बताती है कि बचपन से वह अपने बेटियों को पति के साथ ग्राउंड लेकर जाती थी और उन्हें गोला फेंक खेल की पति के साथ प्रेक्टिस करवाती थी. पति पत्नी बच्चों को गोला फेक खेल के लिए पारंगत करते थे. जब शारदा 50 की उम्र में पहली बार मैदान में खेलने उतरी तो वह काफी डरी हुई थी. इस पर समाज के रूढ़िवादियों की सोच और ताने उन्हें सुनने पड़ते थे. कुछ लोग कहते थे कि जिस उम्र में बच्चों को खेलना चाहिए उस उम्र में खुद खेल रही है. उन्हें यह सुनकर काफी खराब लगता था, जब वह पहली बार नेशनल कंपटीशन में भाग लेने बेंगलुरु गई तो वह काफी डरी हुई थी. उनके पास उतने पैसे भी नहीं थे कि वह अच्छे से वहां जा सके, लेकिन जब वहां पहुंचने के बाद वह कंपटीशन जीती और गोल्ड मेडल लेकर आई तो वही लोग उनकी तारीफ करने लगे और कहने वालों की जिस उम्र में लोग घर बैठते हैं उस उम्र में उन्होंने दोबारा अपना सपना पूरा किया. कल तक जो लोग उन्हें ताना दिया करते थे आज वह उनकी तारीफ करते हैं.

बाइट शारदा पांडेय तिवारी, एथलीट्स, ब्लैक टीशर्ट

बेटियो ने खेल में वापस लाने में निभाई अहम भूमिका

शारदा तिवारी के पति गोला फेक में स्टेट चैंपियन रहे हैं, इसके अलावा उनकी दो बेटी राशि तिवारी और रिया तिवारी भी एथलेटिक्स में गोला फेक कंपीटिशन में भाग लेकर स्टेट चैंपियनशिप हासिल कर चुकी है. बेटियों ने बताया कि वह भी अच्छी खिलाड़ी रही हैं लेकिन अपनी मां के लिए कहती हैं कि उनकी मां शारदा पांडे अपने जीवन में परिवार को काफी महत्व देती है. उन्होंने अपना सपना परिवार के लिए भूल कर 25 साल परिवार को दे दिया और बेटियों की जिंदगी बनाने के लिए वह अपनी जिंदगी भूल गई थी, लेकिन जब बेटियों की शिक्षा दीक्षा होने के बाद अपनी जिम्मेदारी पूरी कर घरेलू कार्य में व्यस्त हुई, तब बेटियों ने अपनी मां को वापस फिर एक बार उनका जीवन जीने और उनके सपने पूरे करने की प्रेरणा देने लगे. वह मां शारदा तिवारी को हमेशा ही अपना खेल दोबारा शुरू करने के लिए प्रेरित करते थे.

बाइट राशि तिवारी, बेटी, रेड टीशर्ट
बाइट रिया तिवारी, ब्लू टीशर्ट

सैकड़ो की तादात में मैडल और शील्ड किया हासिल

शारदा तिवारी कुछ सालों में ही सैकड़ो मेडल प्राप्त कर चुकी है और उन्हें चैंपियनशिप में भाग लेने इनविटेशन मिलने लगा है. वह जहां भी एथलेटिक्स में गोला फेक कंपटीशन होता है वह भाग लेती हैं. उनके घर में मेडल और शील्ड सैकड़ो की तादाद में है. पति, दोनों बेटियां और खुद गोल्ड मेडल हासिल कर चुके हैं. यही वजह है कि बिलासपुर में उनके परिवार को चैंपियन परिवार कहा जाता है. शारदा योग भी करती हैं और सूर्य नमस्कार के साथ ही वह अपनी खेल की प्रैक्टिस शुरू करती हैं. 50 की उम्र से दोबारा खेल में आई शारदा अपनी बढ़ती उम्र को मात देते हुए आज भी वही फुर्ती कायम रखी हुई है जो 25 साल की लड़की में देखा जाता है.

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