बिलासपुर । छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में अपना तर्क देते हुए कहा है कि बिन बिहाई माँ से जन्म हुए बच्चे को हक़ दिलाने में कोर्ट इनके साथ रहेगा। बच्चे के जन्म के 29 वर्ष बाद हाई कोर्ट से उसका हक मिल गया है। कोर्ट ने वैध पुत्र मानते हुए उसके जैविक पिता से सभी लाभ प्राप्त करने का हकदार घोषित घोषित किया है। हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के निर्णय विकृत और कानून के अनुरूप नहीं होने के कारण खारिज किया है।
सूरजपुर जिला निवासी युवक ने अपने जैविक पिता से भरण पोषण व उनके सम्पति में हक़ दिलाने परिवार न्यायालय में परिवाद पेश किया था। परिवार न्यायालय से मामला खारिज होने पर युवक ने हाई कोर्ट में अपील पेश की। अपील में कहा गया कि उसके जैविक पिता और मा पड़ोस में रहते थे, दोनों के मध्य प्रेम संबंध रहा। इससे उसकी माँ गर्भवती हो गई। पिता ने गर्भपात कराने कहा इस पर मा ने इनकार किया और मामले की रिपोर्ट दर्ज कराई। नवंबर 1995 को युवक का जन्म हुआ। वह अपनी माँ के साथ रही। माँ ने स्वयं और बच्चे के भरण पोषण के लिए परिवार न्यायालय में प्रकरण पेश की थी। परिवार न्यायालय ने संपत्ति के अधिकारों की घोषणा वैवाहिक पक्ष के दायरे में नहीं होने के कारण इसे बनाए रखने योग्य नहीं माना था, इस निर्णय के खिलाफ वादी ने हाईकोर्ट में अपील की। जैविक पिता ने पिता होने से इंकार किया। इसके काफी समय बाद अप्रैल, 2017 में जब युवक बीमार पड़ गया और वित्तीय संकट के कारण, वह जैविक पिता के घर गया और इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगी तो उसने मना कर दिया। इससे रुष्ट होकर युवक ने पहले परिवार न्यायालय में सम्पत्ति का दावा पेश किया, जो पारिवारिक न्यायालय ने खारिज कर दिया।
कोर्ट ने दिया ये फैसला
हाईकोर्ट में इसकी अपील की गई। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने माना कि वादी ने अपने जैविक पिता के खिलाफ पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार और शीर्षक की घोषणा के लिए मुकदमा दायर किया था और इस राहत के लिए परिसीमा अधिनियम में कोई सीमा निर्धारित नहीं है। जब भी बच्चों को उनके अधिकार और स्वामित्व से वंचित किया जाता है तो वह उनके लिए अदालत हमेशा उपलब्ध रहते हैं। कोर्ट ने परिवार न्यायालय द्वारा दर्ज निष्कर्ष विकृत और कानून के अनुरूप नहीं होने के कारण खारिज कर दिया। कोर्ट अपील मंजूर कर युवक को दोनों का वैध पुत्र घोषित किया , इसके साथ ही उसे वह सभी लाभों का हकदार घोषित किया है जो उसे पिता से मिलना चाहिए।
कोर्ट ने ये कहा
अपीलकर्ता युवक का जन्म 1995 में हुआ है व वर्तमान में वह लगभग 29 वर्ष का है। लंबे संघर्ष के बाद युवक को हाई कोर्ट से हक मिला है। कोर्ट ने कहा जब भी ऐसी कोई भी याचिका उनके समक्ष आयेगी वह मामले की गंभीरता को देखते हुए निष्पक्ष फैसला करेंगे।