बिलासपुर. शहर के एक नेता के जन्मदिन पर पूरा शहर उनके जन्मदिन मनाने की तैयारी कर खुशियां मना रहा था, लेकिन वही उनके एक छुटभइया कार्यकर्ता ने इस मौके का फायदा उठाते हुए विज्ञापन के लाखों रुपए दबा दिया। यह छुटभईया कार्यकर्ता किसी समय खुद को पत्रकार बताते हुए शहर के एक थाने में दलाली करने पूरा दिन खड़ा रहता था, और जैसे ही कोई फरियादी थाना फरियाद लेकर आता यह तुरंत सेटिंग करने में लग जाता था। धीरे-धीरे कर यह राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता और नेताओं से संबंध बनाकर एक पार्टी ज्वाइन कर लिया। पार्टी ज्वाइन करते ही यह शहर के एक बड़े नेता का खुद को कार्यालय प्रभारी बताने लगा और इसी बहाने वह शहर में नेताजी का खुद को राइट हैंड बताते हुए दलाली शुरू कर दिया। अब स्थिति यह है कि यह छुटभइया कार्यकर्ता नेताजी के जन्मदिन पर लाखों रुपए विज्ञापन के दबा लेता है।
बिलासपुर प्रदेश के लाडले और चहेते नेता जी का जन्मदिन प्रदेश सहित उनके विधानसभा क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया गया। सड़कों पर जन्मदिन की बधाई देते हुए होर्डिंग और फ्लेक्स लगे हुए थे। टीवी और पेपर में बड़े-बड़े विज्ञापन भी थे, लेकिन इन विज्ञापनों का एक काला सच यह भी है कि नेताजी के छुटभईया कार्यकर्ता ने विज्ञापन के लाखों रुपए दबा दिए। टीवी और अखबारों में यह छुटभईया कार्यकर्ता जारी विज्ञापन के आधे पैसे देता है और बाकी पैसा खुद हजम कर जाता है। इस छुटभईया कार्यकर्ता की वजह से नेता जी को एक बार बड़ा आघात भी हुआ था और वह इस छुटभईया कार्यकर्ता की कर्मों की वजह से चुनाव हार भी गए थे, लेकिन नेताजी को इन बातों की जानकारी काफी देर बाद हुई और तब उन्होंने उसे कड़े शब्दों में समझाइए देकर ऐसा करने से मना किया था, लेकिन एक बार फिर वही स्थिति उत्पन्न हो गई है और यह छुटभईया कार्यकर्ता अब भी विज्ञापन लेने जाने वालो से बदतमीजी करता है और विज्ञापन के लाखों रुपए दबाकर मुंह में गुटका भरे कार्यालय में जगह-जगह थूकता है।
दलाली कर खुद को पत्रकार भी बताता रहा
छुटभईया कार्यकर्ता किसी जमाने में शहर के एक बड़े थाने में पत्रकार बनकर दिन-रात डटा रहता था। ये थाने में दलाली करने पहुंचता था। जब कोई फरियादी थाने में रिपोर्ट लिखाने पहुंचे तो यह दलाल उनसे बातचीत कर दलाली करने लगता था। कभी पुलिस की तरफ से तो कभी फरियादी की तरफ से, और इस दलाली के एवज में मोटी रकम वसूल करता था। धीरे-धीरे यह पत्रकारों के बीच उठने बैठने लगा, तब भी इसकी आदत वैसी की वैसी ही थी। मुंह में गुटखा दबाए यह दलाल पत्रकारों की सेवा में लगा रहता था और इसी बहाने शासन प्रशासन में अपनी पहचान बनाने लगा। बाद में यह दलाल एक नेता जी को इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अपने कार्यालय में चपरासी के रूप में रख लिया। शुरुआत में यह आने जाने वालों को पानी और नाश्ता कराया करता था। बाद में जब नेताजी किसी पद में नहीं थे। तब लोगों का आना-जाना कार्यालय में काम हुआ और यह कुर्सी में बैठने लगा अब स्थिति यह है कि यह खुद को कार्यालय प्रभारी बताने लगा है। इस दलाल नेता ने विज्ञापन के लाखों रुपए डकारें हैं और गुटखा खाकर लोगो को मूंह चिड़ाता है। इससे नेता जी को बचना चाहिए नही तो आने वाले चुनाव में कही फिर इसकी वजह से नेता जी को नुकसान न उठाना पड़े।
Itna likhe ho bhai….ab uska naam bhi likh dete to sab Jaan jaate…
Haha